भाई, तेरी परेशानियों की फ़िक्र किसी को नहीं, पर ताने मारने में सब सबसे आगे हैं।
अरे आज ये हुआ, उसने उसे मारा, बेचारा वो… बस बातें बनाते रहेंगे।
लोग क्या-क्या बोलते हैं, खुद उन्हें भी नहीं पता।”
हम में से ज़्यादातर लोग अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े फैसले लेने से पहले एक ही बात सोचते हैं—
“समाज क्या कहेगा?”
और बस, यहीं से हमारी हिम्मत टूटने लगती है।
लेकिन सच क्या है?
समाज को कोई फर्क नहीं पड़ता।
ना तेरी मेहनत दिखती है,
ना तेरी तकलीफ़,
ना तेरे सपने।
लेकिन ताने मारने में, सलाह देने में, या पीठ पीछे बातें करने में…
सबसे आगे वही लोग होते हैं जिनका तेरी जिंदगी से कोई लेना–देना भी नहीं।
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1. लोग बोलेंगे ही—ये उनका काम है
आज तू अच्छा कर ले,
तो बोलेंगे—“नसीब अच्छा है इसका।”
अगर कोई गलती हो जाए,
तो कहेंगे—“देखा? हमने तो पहले ही कहा था।”
तेरी मेहनत का क्रेडिट कभी नहीं देंगे,
और तेरी हार का मज़ा हमेशा लेंगे।
तो फिर तू क्यों रुक रहा है?
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2. दूसरों की सोच का बोझ उठाकर कौन जी पाया है?
अगर तू हर कदम पर समाज की सोच का हिसाब करता रहा,
तो अपनी जिंदगी का एक भी फैसला दिल से नहीं ले पाएगा।
समाज को खुश करने की कोशिश में
तू खुद को खो देगा।
और एक दिन पछतावा ही बचेगा।
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3. तू खुद की कहानी का हीरो है—लोगों का नहीं
तू अपने सपनों का हकदार है।
तेरी मेहनत, तेरे डर, तेरे फैसले—
सब तेरे हैं।
जो लोग बोलते हैं,
उन्हें सिर्फ बोलना आता है।
लेकिन तुझे जीना आता है।
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4. असली जीत तब है जब तू बोलने वालों को चुप कर दे
जब तेरी मेहनत की रोशनी तेरी जिंदगी में चमकेगी,
तब वही लोग कहेंगे—
“हम तो इसे बचपन से जानते थे… ये तो बड़ा कुछ करेगा!”
लोगों का काम बोलना है—
और तेरा काम उन्हें अपने काम से जवाब देना।
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5. जिंदगी तेरी है—फैसले भी तेरे होने चाहिए
तू चाहे नौकरी चुने, प्यार चुने, करियर बदले,
या एक नया रास्ता अपनाए—
याद रख:
समाज तेरी जिंदगी नहीं जीता, तू जीता है।
तो फिर डरता क्यों है?
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अंत में…
“समाज तेरे बारे में क्या बोलेगा, ये सोचकर क्यों रुकता है तू?”
बोलने दो…
थक जाएँगे।
लेकिन तू?
तू चलेगा—
अपने रास्ते पर, अपनी ज़िंदगी में, अपने सपनों के साथ।


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